15.06.2022 PressNote

जयगुरुदेव

प्रेस नोट
15.06.2022
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

*पाप, पुण्य दोनों का बंधन जब तक छूटेगा नहीं तब तक मुक्ति-मोक्ष नहीं मिलेगा, बंधे पड़े रहोगे*

*इसी मानव मंदिर से जीते जी स्वर्ग, बैकुंठ, अपने घर सतलोक जाने का रास्ता है जिसे भेदी जानकार गुरु ही बताते हैं*

*मनुष्य शरीर रहने तक ही माफी का समय है, मरने के बाद होगा कर्मों का हिसाब और मिलेगी सजा*

जन्म-मरण से, नरक और चौरासी के चक्कर से, कर्मों के बंधन से, भवसागर से, काल और माया के जाल से, इस नश्वर दुनिया की लुभावनी लेकिन झूठी चीजों से, संसार के क्षण मात्रा के सुख और निरंतर दीर्घकालिक दुःखों से, काम क्रोध लोभ मोह अहंकार के लगातार होने वाले हमलों से बचने का रास्ता बताने समझाने वाले, बचाने वाले, रास्ते पर चलाने वाले और जीवात्मा को अपनी असली मंजिल अपने देश सतलोक जयगुरुदेव धाम ले चलने वाले, हर प्रकार से समर्थ भक्तों के रक्षक संकटमोचन तारणहार इस समय के दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 10 जून 2022 को दुर्ग छत्तीसगढ़ स्थित आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में जीते जी मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने का उपाय बताया।
 
*पाप-पुण्य समाप्त करने और सकल गुणों से हीन होने पर ही जीवात्मा ऊपर जा सकती है*

पाप पुण्य जब दोनों नाशै।
तब पावे मम पुर वासे।।
पाप करोगे नर्क जाओगे, पुण्य करोगे स्वर्ग जाओगे लेकिन छुटकारा नहीं पाओगे। फिर उतर कर नीचे मृत्युलोक में आना पड़ेगा। जब दोनों खत्म हो जाए, कर्म ही न रह जाए तो ऊपर निकल जाओ। कहा है-
पूजहि विप्र सकल गुण हीना।
शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा।।
सकल गुणों से हीन हो तब। सकल गुण कौन है- रजोगुण, तमोगुण सतोगुण। यह रहते हैं तो गुणातीत नहीं हो सकता है। ज्यादा विस्तार में जाऊंगा तो आप समझ नहीं पाओगे।

*पाप और पुण्य क्या है, पुण्य कैसे बनता है*

जैसे कोई भूखा आया, आप सोचोगे कि भूखे को रोटी खिलाना पुण्य का काम अच्छा काम है तो आप चित्त से चिंतन करोगो। चित्त की डोरी ब्रह्मा के हाथ में है। वह प्रेरणा दे देंगे कि खिला दो। फिर बुद्धि से सोचोगे जिसकी डोरी विष्णु के हाथ में है। विष्णु डोरी खीचेंगे, आपके अंदर यह आएगा कि पुण्य बनेगा, खिला दो। फिर माया कहेगी हां दे दो, कोई बात नहीं। उसके बाद शिव भी कहेंगे ठीक है दे दो, खिला दो। आपने रोटी खिला दिया। उससे पुण्य बन गया। ज्यादा पुण्य इकट्ठा होने पर स्वर्ग बैकुंठ तक ही जाओगे।

 *पाप कैसे बनता है*

यही देवता पुण्य और पाप दोनों बनावाते हैं क्योंकि इनका काम केवल फंसाये रखने का है, ऊपर निकलने नहीं देने का है। जगह-जगह पर इन्होंने नाका बना करके रोक लगा दिया। कहा है-
इंद्री द्वार झरोखा नाना। तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना॥
आवत देखहिं बिषय बयारी। ते हठि देहिं कपाट उघारी।।
रोम-रोम पर देवताओं को बैठा दिया है कि विषय वासनाओं के आते ही दरवाजा खोल दो। ये इनका काम है। जैसे किसी के घर में आप गए, कोई है नहीं। आपको रुपया पैसा दिखाई पड़ गया, दो-दो हजार की दस-बीस गड्डी रखी है। मन तो कहेगा उठा लो, चुरा लो। फिर चित्त से चिंतन करोगे कि उठाएं या न उठाएं। उठा लेंगे तो चोरी मानी जाएगी। फिर बुद्धि लगाओगे, चोरी अगर पकड़ में आ गई तो सजा मिलेगी, जेल जाना पड़ेगा, मार खाना पड़ेगा। फिर शिव डोरी खींचेगे। उनका काम क्या है? अहंकार लाना। अहंकार ला देंगे, कहेंगे, देख लेंगे। क्या होगा? ले लो माल, देखा जाएगा। लाख दो लाख इसमें से दे देंगे, छूट जाएंगे, कुछ नहीं होगा। अब चुराया तो पाप बन गया फिर नर्क चले जाओगे।

*पाप और पुण्य का बंधन जब तक छूटेगा नहीं तब तक जीव हंस नहीं हो पाएगा*

मतलब आप बंधे हो। जब से इस मृत्युलोक में आए तब से आप निकल नहीं पाए। मनुष्य शरीर भी आपको मिला, जीवात्मा कीड़ा, मकोड़ा, सांप, बिच्छू के शरीर में भी बंद की गयी। क्योंकि यही जीवात्मा सजा भोगने के लिए कर्मों के अनुसार नरकों में डाली जाती है, मार खाती हैं, सडाई, गलाई, तपाई जाती है। लेकिन आपको कोई रास्ता बताने वाला नहीं मिला, कोई घर की, अपने पिता की याद दिलाने वाला नहीं मिला। आप अपने पिता को, घर को जहां से नीचे उतारे गए, भूल ही गए। उनके पास पहुंचने का रास्ता नहीं मिला और रास्ता भी मिल गया तो उनको कभी याद नहीं किया बस फंस गए। अबकी बार मौका मिला है आपको, अबकी बार मनुष्य शरीर आपको मिला है।
 
*कोटि जन्म जब भटका खाया।*
*तब यह नर तन दुर्लभ पाया।।*
करोड़ों जन्मों में भटकने के बाद तब यह मनुष्य शरीर मिलता है। प्रेमियों! अब इस शरीर से अपने घर को याद करो। झूठे के पसारे में मत फंसो, सत्य को, सतपुरुष को याद करो, सतसंग की बातों को समझो, अपने घर की तरफ आगे बढ़ो।

*मनुष्य शरीर रहने तक ही माफी का समय है, मरने के बाद होगा कर्मों का हिसाब और मिलेगी सजा*

कोई कहे कि मरने के बाद ही हम अपने घर जा पाएंगे तो मरने के बाद आज तक कोई स्वर्ग और बैकुंठ तक नहीं पहुंच पाया। अगर गया तो जीते जी गया। इसी मनुष्य शरीर के अंदर के रास्ते से गया। शरीर छूटने के बाद तो आपको कर्मों का, जो अच्छा बुरा किया उसका हिसाब होगा और उसी अनुसार सजा मिल जाएगी। अभी आपका शरीर रहते आपके कर्मों की माफी का भी समय है। अभी माफी हो भी सकती है। आप अपने अंदर के रास्ते को साफ करके उस रास्ते से चलकर के वहां अपने असली घर वतन देश पहुंच सकते हो। इसलिए वो सच्चा रास्ता बताने वाले शब्द भेदी पूरे जानकार गुरु को खोजो और समय रहते अपना असला काम बना लो।

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